Milestone's Literature

जून 22, 2013

संत कबीर और दलित-विमर्श (संत कबीर दास जयंती पर विशेष )

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कबीर का काव्य भारतीय संस्कृति की परम्परा में एक अनमोल कड़ी है। आज का जागरूक लेखक कबीर की निर्भीकता, सामाजिक अन्याय के प्रति उनकी तीव्र विरोध की भावना और उनके स्वर की सहज सच्चाई और निर्मलता को अपना अमूल्य उतराधिकार समझता है।कबीर न तो मात्र सामाजिक सुधारवादी थे और न ही धर्म के नाम पर विभेदवादी। वह आध्यात्मिकता की सार्वभौम आधारभूमि पर सामाजिक क्रांति के मसीहा थे। कबीर की वाणी में अस्वीकार का स्वर उन्हें प्रासंगिक बनाता है और आज से जोड़ता है। इस वर्ष 23 जून, 2013 को संत कबीर दास जयंती मनायी जा रही है, आप सभी को इस महती पर्व की हार्दिक बधाई ।
कबीर मानववादी विचारधारा के प्रति गहन आस्थावान थे। वह युग अमानवीयता का था , इसलिए कबीर ने मानवता से परिपूर्ण भावनाओं, सम्वेदनाओं व् चेतना को जागृत करने का प्रयास किया।हकीकत तो यह है की कबीर वर्गसंघर्ष के विरोधी थे। वे समाज में व्याप्त शोषक-शोषित का भेद मिटाना चाहते थे। जातिप्रथा का विरोध करके वे मानवजाति को एक दूसरे के समीप लाना चाहते थे।
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